योग के अंदर 10 महा मुद्राएं हैं। जो वृद्धावस्था और मृत्यु को दूर रखते हैं। ऋषियों के द्वारा खोजा हुआ, प्रमाणित फल के साथ, बहुत से ऐसे आसन, प्राणायाम, मुद्रा आदि हैं जो हमारे जीवन को नई दिशा, नई उमंग और नया ऊर्जा के साथ जीने के लिए प्रोत्साहन देते हैं, मार्ग देते हैं और शक्ति देते हैं। कोई भी मुद्रा हो, जो हाथ से किया जाता है उसे कम से कम 3 मिनट करना चाहिए । आज मैं ऐसी मुद्रा के बारे में बताऊंगा जिसका अनंत काल से ऋषि मुनि और योगी उपयोग करते आये हैं। यह एक योगियों की गुप्त विद्या है। आज के समय सबको लाभ मिले ऐसी कामना करके मैं इस मुद्रा को बताने जा रहा हूं। गुरुदेव ने हमें आदेश दिया है कि बच्चा समय आने पर इस विद्या को प्रकट कर देना। इसलिए मैं आपको बता रहा हूं। इस मुद्रा का नाम है काल मुद्रा।
इस मुद्रा का नित्य अभ्यास करना चाहिए। रात्रि को सोते समय और सुबह उठने के बाद यह मुद्रा करने से हमारे शरीर में, हमारे मन, बुद्धि पर बहुत ही स्थिर प्रभाव डालता है। इस मुद्रा का हमारे जीवन में उपयोग क्या है ? वह यह है कि इस मुद्रा का नित्य अभ्यास करते हैं तो यह मुद्रा आपके शरीर में ऐसी ऊर्जा उत्पन्न कर देती है कि आदमी जल्दी बीमार नहीं पड़ता, जल्दी मृत्यु के तरफ नहीं जाता। इस मुद्रा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि जो व्यक्ति इस मुद्रा को नित्य करता है, उसे मौत से 6 महीना पहले यह मुद्रा संकेत दे देता है। उसे 6 महीना पहले पता चल जाता है कि उसकी मृत्यु होने वाली है। उस व्यक्ति को मृत्यु वरण करने लगता है और 6 महीने बाद उसकी मृत्यु हो जाती है। हमारे गुरुदेव सरकार ने बताया कि बच्चा यह मुद्रा योगियों को अत्यंत प्रिय है। इसके माध्यम से वह क्या करते हैं। इसका वह निरंतर अभ्यास करते हैं। इस मुद्रा के माध्यम से योगी लोग 6 महीना पहले जान जाते हैं कि हमारी मृत्यु आने वाली है। वह हिमालय चले जाते हैं। एकांत में चले जाते हैं। गुफा का आश्रय ले लेते हैं या जमीन में गुफा बनाकर के उसने प्रवेश कर जाते हैं। दसों इंद्रियों को निग्रह करके उनके द्वार बंद करके, प्राण को कपाल अर्थात ब्रह्मरंध्र में चढ़ा लेते हैं। ऐसा करके खेचरी मुद्रा से आंख, कान, नाक यह तीन दरवाजे बंद हो जाते हैं। मूलाधार जालंधर करके सारे दरवाजे बंद कर देते हैं, फिर प्राण और अपान वायु को साधते हुए समान, उदान और व्यान तीनों को साधते हुए समाधि की अवस्था में चले जाते हैं।

जब मृत्यु आती है तो भंवरे की तरह मंडराती रहती है, लेकिन उसकी दाल नहीं गलती है। वह सोचती है प्राण कहां से निकालें, कैसे निकाले, क्योंकि योगी के शरीर के बाहर एक अद्भुत ऊर्जा यानि योग की उर्जा रहती है। जिसमें वह प्रवेश नहीं कर पाती है। जब मृत्यु उसमें प्रवेश नहीं कर पाती है तो वह मृत्यु वापस चली जाती है। योगी अपने संकल्प के अनुसार साधना से 6 महीने बाद, 8 महीने, 10 महीने या साल बात जाने पर अपने संकल्प सिद्धि के अनुसार उठते हैं और फिर से ईश्वर चिंतन में लग जाते हैं। जो साधना करते हैं वह प्राण को कपाल में छुपा देते हैं और मृत्यु उनको खोज नहीं पाती है। आप इतना नहीं कर पाएंगे। मेरा बताने का उद्देश्य है कि जब यह मुद्रा आपको संकेत दे दे कि आपकी मृत्यु 6 महीने बाद आने वाली है, तो कृपा करके हरि का नाम सुमिरन खूब करें। अच्छे सत्कर्म में लग जाए। ध्यान करें, जप करें। आप अपना कल्याण करें।
अब मैं आपको बताने जा रहा हूं काल मुद्रा क्या है और इसको कैसे करना है? इसके लिए आपको पहले परमात्मा को प्रणाम करना है। हे, प्रभु ! आपने हमें जो शरीर दिया है इसमें रहने वाले को आत्मा दिया है। मैं मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, पांच कर्मेंद्रियां और पांच ज्ञानेंद्रियां इन दसों इंद्रियों के साथ मैं आपको प्रणाम करता हूँ। आपके द्वारा दिया हुआ काल मुद्रा कर रहा हूं। मेरी रक्षा करना और मेरा कल्याण करना। कोई गुरु मंत्र है आपके पास तो उसका जाप करें या महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें।
इसके लिए आप अपने दोनों हाथों की अंगुलियों को आपस में आमने सामने से मिला लें और फिर दोनों तर्जनी अंगुली निचे की तरफ मोड़कर (चित्र में दिए अनुसार) बना लें। जैसे किसी पर हाथों से पिस्तौल तानते हैं वैसे ही। इस मुद्रा को बनाकर अपनी छाती के पास अंगूठे रखना है। 10 बार गुरु मन्त्र या गायत्री मन्त्र का उत्चारण करने के बाद इसे छोड़ देने हैं ।
ऐसा करते समय जिस दिन आपकी अनामिका अंगुली खुल जाए उससे 6 महीने बाद आपकी मृत्यु हो जाएगी। उससे आपको कोई नहीं बचाएगा। उस समय सिर्फ साधना काम आता है। सिर्फ भजन काम आता है। सिर्फ योग काम आता है।
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