Feb 24, 2024

सच्चे गुरु की पहचान क्या है ?

  Digital Dunia       Feb 24, 2024

गू का अर्थ होता है अंधकार रु का अर्थ होता है प्रकाश। यानि अंधकार से जो प्रकाश की ओर ले जाए उसे गुरु कहते हैं। गुरु वह होता है जो शिष्य को भी गुरु बना दे। 

गुरु ऐसा होना चाहिए जो बिना भेदभाव के अपना सारा ज्ञान अपने शिष्यों को प्रदान करें। गुरु ऐसा को ऐसा ज्ञान देना चाहिए जिससे शिष्य भी लघु से गुरु हो जाए। भगवान ने अपनी बातों को लोगों तक समझाने के लिए, उन्हें सही रास्ते पर लाने के लिए, व्यक्ति का आध्यात्मिक विकास कैसे हो, उसको ज्ञान कैसे मिले, उसके लिए एक प्रतिनिधि परंपरा का प्रारंभ किया, इसी को संत या गुरु परंपरा कहते हैं। संत अथवा गुरु वह होता है जिसके अंदर लोभ-लालच और कामना-हीनता न हो। 

श्रीमद्भागवत गीता में सच्चे गुरु को तत्वदर्शी संत कहा गया है। गीता अध्याय 15 श्लोक 1 में स्पष्ट हैः-

ऊर्धव मूलम् अधः शाखम् अश्वत्थम् प्राहुः अव्ययम्।

छन्दासि यस्य प्रणानि, यः तम् वेद सः वेदवित् ।।

आज हम देखते हैं कि बहुत सारे ऐसे गुरु है जो अपने तो ज्ञानी होकर बैठे हैं लेकिन चेले को वह ज्ञान प्रदान नहीं करते जिससे चेला भी उनकी तरह उस ज्ञान और विद्या को हासिल कर सके। वह गुरु, गुरु नहीं जो चेले को गुरु न बना दे ।

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सच्चे गुरु की पहचान क्या है ? (Sachche Guru Ki Pahchan)

कबीर दास जी ने सच्चे गुरु के चार मुख्य लक्षण बताये हैं :-

1.  सब वेद तथा शास्त्रों को वह ठीक से जानता हो।

2. वह स्वयं भी भक्ति मन-कर्म-वचन से करता हो अर्थात् उसकी कथनी और करनी में कोई अन्तर नहीं हो।

3. वह सर्व अनुयाईयों से समान व्यवहार करता हो, भेदभाव नहीं रखता हो।

4. वह सर्व भक्ति कर्म वेदों के अनुसार करवाता हो तथा अपने द्वारा करवाए भक्ति कर्मों को वेदों से प्रमाणित भी करता है।

गुरु कितने प्रकार के होते हैं ? (Guru Kitne Prakar Ke Hote Hain)

शैक्षिक गुरु : शैक्षिक गुरु हमे सामान्य शिक्षा प्रदान करता है। जिससे  हम रोजगार प्राप्त करते हैं। जो हमें विद्यालय में पढ़ाता है।

मार्गिक गुरु : मार्गिक गुरु वह होता है जो हमे अच्छाई का मार्ग दिखाये, हमें सही सुझाव दे। जैसे माता-पिता, संबंधी, मित्र, प्रवचन करने वाले संत-साधु आदि।

कुलगुरु : जो हमारे कुल खानदान का पथ प्रदर्शन करता है। जो हमारे कुल या परिवार का पुरोहित होता है, जो वंश या कुल के सदस्यों को दीक्षा या ज्ञान देता है। 

सद्गुरु : सद्गुरु वह दैविक गुरु होता है, जो हमे परमात्मा से मिलाता है। जो हमे सच्चा ज्ञान प्राप्त करने का मार्गबताता है। जो हमें आत्म ज्ञान देता है। 

गुरु की महिमा का बखान नहीं किया जा सकता । गुरु की महिमा ईश्वर से भी अधिक कही गयी है। इसलिये शास्त्रोँ मेँ लिखा है : गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवो महेश्वर: ।

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